Wednesday, December 19, 2012


कहाँ थी माँ शेराँ वाली जब दिल्ली में इतना घृणित काण्ड हो रहा था
उठो...जागो....अभी भी वक़्त है
अंधविश्वासों ..... अंधी श्रधाओं...
पाखंडी धर्मों ....... से कोइ सुधार नहीं होने वाला

अगर मंदिर जाने से कोई धार्मिक हो सकता तो दुनिया न जाने कितनी बार धार्मिक बन गयी होती
जितने मन्दिर......... मस्जिद............ गुरुद्वारे............. मत.............मठ...............
आज इस दुनिया में हैं पहले कभी नहीं थे
और जितनी अधिक अधार्मिक दुनियां आज है इतनी अधार्मिक भी कभी नहीं थी
इसका सीधा सा अर्थ है
या तो ये धर्म हमें अधार्मिक बना रहे हैं ..............
या वास्तव में ये सच्चे अर्थों में सही धर्म नहीं हैं

इस लिए आवाहन है मेरा सभी से

आओ ऐसे धर्म...समाज की सृजना करें
जो सही मायनों में धार्मिक हो .......पवित्र हो

Saturday, December 15, 2012





आपकी आँखों के सामने वर्तमान में क्या हो रहा है, 
अक्सर मानव उसी को देख और समझ पाता है
अक्सर मानव ये नहीं जानता कि वर्तमान का वास्तव में अतीत से गहरा सम्बन्ध है 
इसके अतिरिक्त वर्तमान भविष्य के कार्यक्रम की रूपरेखा भी है ।
प्रत्येक जन्म, अपने अतीत के, पिछले जन्म के, अनुभवों और स्मृतियों को चाहे भूल चुका होता है मगर वर्तमान जन्म, पूर्वजन्म के संस्कारों का परिणाम मात्र ही होता है,
यह एक बहुत पुराना प्रश्न है कि पहले मुर्गी पैदा हुई या अंडा 
या यूं भी कह सकते हैं पहले वृक्ष हुआ या बीज

ये ठीक है कि अगर आज तक कोई इन प्रश्नों का उत्तर नहीं ढूंढ पाया तो आप भी शायद ना जान पायें, 
परन्तु आप इस चक्र को रोक सकते हैं....... 

यदि आप बीज को पका कर सब्जी बना लेते हैं, तो उस बीज से नये वृक्ष कि उत्पत्ति का चक्र रुक जाएगा 
इसी प्रकार यह बात इस तरह समझी जा सकती  है कि वर्तमान तो मान लिया हमारे पूर्वजन्मों अथवा हमारे अतीत के कर्मों का फल है, परन्तु क्योंकि यही वर्तमान भविष्य की रूपरेखा भी है, 
अगर हम चाहें तो भविष्य का अंत कर सकते हैं ........जड़ हो कर
और यदि अंत किया जा सकता है 
तो अपनी इच्छा अनुसार इस भविष्य की रूपरेखा तैयार करना भी हमारे ही हाथ है
यदि वर्तमान में अच्छे कर्म करेंगे तो भविष्य निश्चित ही अच्छा होगा 
और बुरे कर्मों का भविष्य बुरा होने से कोई भी शक्ति अथवा वरदान या आशीर्वाद  नहीं बचा सकता
 इसी क्रम  में यह भी कहना गल्त नहीं होगा 
कि जन्म-मरण के चक्र का अंत अर्थात मोक्ष प्राप्ति हमारे अपने हाथ में है, बस अपने वर्तमान को सहेजो, अपनी भविष्य की इच्छा के अनुरूप इसका उपयोग करो 
और यदि आप अपना भविष्य अच्छा चाहोगे तो वो निश्चय हे अच्छा होगा 
बुरा चाहोगे तो बुरा होगा और अगर मोक्ष की कामना होगी तो मोक्ष भी मिलेगा

हमारे पूर्व के ऋषि-मुनियों द्वारा  रचित ग्रन्थों व् शास्त्रों का मकसद 
केवल और केवल आप के मन में इस बात को अच्छी तरह स्थापित करना मात्र था 
न कि आप को गुमराह करने का, 
जैसा कि, आजकल ढोंगी, धर्मगुरु और मठाधीश, षड्यंत्र अथवा प्रयासकर रहे हैं l

Monday, October 15, 2012


बहुत समय पहले की बात है ,
 किसी गावं में 6 अंधे आदमी रहते थे. 
एक दिन गाँव वालों ने उन्हें बताया , ” अरे , आज गावँ में हाथी आया है.” उन्होंने आज तक बस हाथियों के बारे में सुना था पर कभी छू कर महसूस नहीं किया था. उन्होंने ने निश्चय किया, ” भले ही हम हाथी को देख नहीं सकते , पर आज हम सब चल कर उसे महसूस तो कर सकते हैं ना?” और फिर वो सब उस जगह की तरफ बढ़ चले जहाँ हाथी आया हुआ था.

सभी ने हाथी को छूना शुरू किया.

पहले व्यक्ति ने हाथी का पैर छूते हुए कहा.
” मैं समझ गया, 
हाथी एक खम्भे की तरह होता है”, 

 दूसरे व्यक्ति ने पूँछ पकड़ते हुए कहा
“अरे नहीं,
 हाथी तो रस्सी की तरह होता है.”.

तीसरे व्यक्ति ने सूंढ़ पकड़ते हुए कहा
“मैं बताता हूँ,
ये तो पेड़ के तने की तरह है.”, .

चौथे व्यक्ति ने कान छूते हुए सभी को समझाया.
” तुम लोग क्या बात कर रहे हो, 
हाथी एक बड़े हाथ के पंखे की तरह होता है.” , 

पांचवे व्यक्ति ने पेट पर हाथ रखते हुए कहा.
“नहीं-नहीं , 
ये तो एक दीवार की तरह है.”, 

छठे व्यक्ति ने अपनी बात रखी.
” ऐसा नहीं है ,

हाथी तो एक कठोर नली की तरह होता है.”, 

और फिर सभी आपस में बहस करने लगे और खुद को सही साबित करने में लग गए.. ..
उनकी बहस तेज होती गयी और ऐसा लगने लगा मानो वो आपस में लड़ ही पड़ेंगे.

तभी वहां से एक बुद्धिमान व्यक्ति गुजर रहा था. 
वह रुका और उनसे पूछा,
” क्या बात है तुम सब आपस में झगड़ क्यों रहे हो?”

” हम यह नहीं तय कर पा रहे हैं कि आखिर हाथी दीखता कैसा है.” , 
उन्होंने ने उत्तर दिया.
और फिर बारी बारी से उन्होंने अपनी बात उस व्यक्ति को समझाई.

बुद्धिमान व्यक्ति ने सभी की बात शांति से सुनी और बोला ,
” तुम सब अपनी-अपनी जगह सही हो. 
तुम्हारे वर्णन में अंतर इसलिए है 
क्योंकि तुम सबने हाथी के अलग-अलग भाग छुए
और अपने अनुभव  के आधार पर 
सब के मन में हाथी की अलग-अलग छवि बन गयी 
और क्यूँ की तुम में से किसी की भी आँखों में रौशनी नहीं है 
कोई हाथी के स्वरूप की सही और सम्पूर्ण व्याख्या नहीं कर पाया 
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बिलकुल यही स्थिति आज के मानव की है 
इसे एक उदाहरन से समझाना आसान होगा 

प्रत्येक व्यक्ति 
चाहे वो साधारण व्यक्ति है या धार्मिक
चाहे अनपढ़ है या ज्ञानी 
चाहे चारों वेदों का ज्ञाता है ब्रह्म ज्ञानी है 
या फिर शास्त्रों का ज्ञाता ही  क्यूँ नहीं 
चाहे शास्त्रार्थ में निपुण है या 
विज्ञान की खोजें कर-कर के वैज्ञानिक हो गया है 

सब की स्थिति बिलकुल ऐसी है 
मानो हाथ में एक छोटी सी टार्च लिए 
अँधेरे जंगल में घूम रहा है या यूं कह लो भटक रहा है 

और टार्च के सीमित दायरे में जो भी उसे दिखाई देता 
है वो उसे ही सच और ज्ञान की पराकाष्ठा  मान लेता है 

परन्तु जैसे ही वोह चार कदम आगे बढ़ता है 
टार्च के प्रकाश का दायरा भी अपनी स्थिति बदल लेता है 
और जो कुछ पहले दायरे में दिखाई देरहा था  वो दृश्य बदल जाता है 
और वो कह उठता है ..........
जो मैंने पहले देखा और कहा था वो सच नहीं था वास्तव में 
मैं गल्ती पर था ....................   
असली सच्च ये है 

और इस प्रकार ज्यूँ-ज्यूँ वो आगे बढ़ता है 
प्रकाश का दायरा अपनी जगह बदलता जाता है 
और त्यूं-त्यूं सच्च भी पल-पल बदलता जाता है 
जब कि सभी धर्म ग्रन्थ कहते हैं 
सच्च कभी नहीं बदलता 


इसी लिए विज्ञान में एक नये शब्द का प्रयोग शुरू करना पड़ा 

................" RESEARCH" .................
 अर्थात   RE-SEARCH ( दोबारा खोज )

यानि कि खोज तो हो चुकी है हम उसे दोबारा खोजने का प्रयास मात्र कर रहे हैं 


तो मित्रो यह है आज का ज्ञान और विज्ञान
यह बस अल्प-ज्ञान, अध्-कचरा ज्ञान और कुछ नहीं 
मात्र अपने आप को मूर्ख सिद्ध करने से अधिक बस और कुछ नहीं 

-इति 

प्रकृति जो दोनों हाथो से लुटाये खुशिया जनमो जनम .!

जिंदिगी में आ के चूम ले, हर खुशी आपके हर कदम ! 


यदि आप का कल का दिन आप को मायूस करने वाला भी था तो 

परेशान मत होईये, घबराईये मत 

अगर जिंदगी का एक ही रंग होता तो नीरस हो जाती 


दुःख-सुख, अनुकूल-प्रतिकूल एक ही सिक्के के दो पहलू हैं 


पैमाना तभी बन सकता है 


जब जांचने-परखने को एक से अधिक वस्तुएं या परिस्थितियाँ हों 

इश्वर एक है तो उसकी तुलना किस-से करोगे 

जो है सो है , जैसा है- वैसा ही है 

तभी तो कबीर ने कहा था

"एक कहूँ तो है नहीं-दो कहूँ तो गारी"

"एक" - इश्वर एक है ............ये कहा नहीं जा सकता 


यह तो कोई बात नहीं हुई 


क्यूं कि एक कहते ही प्रश्न पैदा हो जाता है


एक ---क्या मतलब 


तो कहना पड़ता है मतलब जो............. दो नहीं 


जब तक 1 के साथ 2......3...........4..आदि 


मुकाबले के लिए नहीं होंगे तो 


एक का कोई महत्व ही नहीं रह जायेगा


और परमात्मा दो हो नहीं सकते 


इसी लिए "अद्वैत" मत बना 


जिस के अनुसार 


दो से जो कम है 


अत: एक ही रंग मैं जिंदगी कि व्याख्या 


उसी तरह असम्भव है जैसे ईश्वर की 


अगर कल -या अतीत असुन्दर न होता तो 


आज सुंदर होने का भान नहीं हो सकता था 


आज सुंदर है मतलब कल इस जैसा नहीं था 


आज ज्यादा सुंदर है मतलब कल कम सुंदर था 


हो सकता है आने वाला कल 


आज से भी अधिक सुंदर और भाग्यशाली हो 

जैसी भी है जो भी है बड़ी बड़ी हसीन ये ज़िन्दगी है!!......

good morning............


सुप्रभात............ 

-रवि "घायल"

Sunday, October 14, 2012



अज  समय  आ  गया  है  जब  हमें
सोचना  होगा  कि  आज  हमारा  यह
हाल  क्यों   है ..

हम  विजय  दशमी  मनाते  हैं
और  अच्छाई  की  बुराई  पर  जीत  की
बातें  करते  हैं .

पर  क्या  कभी  सोचा  है  कि
आज  का  हर  प्राणी

"रावण"............ .
(जिसके  मरने  की  ख़ुशी  मनाते  हैं )

के  मुकाबले  मैं  कितना  अच्छा  है ....
रावण ने  तो  एक  सीता  का  अपहरण  किया

आज  तो  न  जाने
कितनी  सीतायें रोज  अपहरण  की  जाती  हैं ....

कितने  पाप  रोज़  किये  जाते  हैं,
कितने  बलात्कार  रोज़  होते  हैं .

रावण ने  तो  केवल  निवेदन  ही  किया  था
सीता  से  बलात्कार  करने  का
कभी  प्रयास  भी  नहीं  किया ...
फिर  रावण  बुरा  कैसे  हुआ ..

क्या  आप  नहीं  जानते  कि
रावण  एक  महान  पंडित  और  ज्ञाता  भी था ...

विनाश   काले  विपरीत  बुद्धि
वक़त  कभी  किसी  का  सगा  नहीं  हुआ

जब  बुरा  वक़त  आता  है  तो  अच्छे
से  अच्छे  आदमी  कि  मति  भ्रष्ट हो  जाती  है

तब  आदमी  का
बर्ताव ....
मन ...
वचन ..
कर्म...
कुछ  भी  उसके  वश  में  नहीं  रहता


होई  है  सोई  जो   राम  रची  राखा
यह  रामायण  का  ही  कहना  है
फिर  हम  रावण  को  दोष  कैसे  दे  सकते  हैं ...

दोष  तो  समय ..का ...हुआ

आओ  आज  बजाये  रावण  के  सिर, दोष  मढने  की बजाए
परमपिता  परमात्मा  से  प्रार्थना  करें  कि  हमें  इस
प्रकार  के  बुरे  वक़्त  से  बचाएँ .

हमें  सदबुद्धी  दें   और
अगर  बुरा  वक़्त   हमारे  भाग्य
में  लिखा  ही  है
तो  उस  बुरे  वक़त  को  संयम  और  सदबुद्धी
से  बिना  किसी  नुक्सान  के  बिताने  का  वरदान  दें

ॐ तथास्तु


Friday, September 7, 2012

"काँच की बरनी और दो कप चाय"

जीवन में जब सब कुछ एक साथ और जल्दी-जल्दी करने की इच्छा होती है,
सब कुछ तेजी से पा लेने की इच्छा होती है,
और हमें लगने लगता है कि दिन के चौबीस घंटे भी कम पड़ते हैं, 
उस समय ये बोध कथा , 


"काँच की बरनी और दो कप चाय" 

हमें याद आती है ।

दर्शनशास्त्र के एक प्रोफ़ेसर कक्षा में आये 
और उन्होंने छात्रों से कहा कि वे आज जीवन का एक महत्वपूर्ण पाठ पढाने वाले हैं...
उन्होंने अपने साथ लाई 
एक काँच की बडी़ बरनी (जार) टेबल पर रखा 


और उसमें टेबल टेनिस की गेंदें डालने लगे 


और तब तक डालते रहे जब तक कि उसमें एक भी गेंद समाने की जगह नहीं बची... 


उन्होंने छात्रों से पूछा - क्या बरनी पूरी भर गई ? 


हाँ... 


आवाज आई...





फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने छोटे-छोटे कंकर उसमें भरने शुरु किये, 


धीरे-धीरे बरनी को हिलाया 


तो काफ़ी सारे कंकर उसमें जहाँ जगह खाली थी, 


समा गये, 





फ़िर से प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा, 


क्या अब बरनी भर गई है, 


छात्रों ने एक बार फ़िर हाँ.. कहा 





अब प्रोफ़ेसर साहब ने रेत की थैली से हौले-हौले उस बरनी में रेत डालना शुरु किया, 


वह रेत भी उस जार में जहाँ संभव था बैठ गई, 


अब छात्र अपनी नादानी पर हँसे... 





फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा, 


क्यों अब तो यह बरनी पूरी भर गई ना ? 





हाँ.. अब तो पूरी भर गई है.. 


सभी ने एक स्वर में कहा..





सर ने टेबल के नीचे से 


चाय के दो कप निकालकर उसमें की चाय जार में डाली, 


चाय भी रेत के बीच में स्थित थोडी़ सी जगह में सोख ली गई...


प्रोफ़ेसर साहब ने गंभीर आवाज में समझाना शुरु किया -





इस काँच की बरनी को तुम लोग अपना जीवन समझो... 


टेबल टेनिस की गेंदें 


सबसे महत्वपूर्ण भाग अर्थात भगवान, 


परिवार, बच्चे, मित्र, स्वास्थ्य और शौक हैं, 


छोटे कंकर मतलब तुम्हारी नौकरी, 


कार, बडा़ मकान आदि हैं, 





और रेत का मतलब और भी छोटी-छोटी बेकार सी बातें, 


मनमुटाव, झगडे़ है..





अब यदि तुमने काँच की बरनी में 


सबसे पहले रेत भरी होती 


तो टेबल टेनिस की गेंदों 


और कंकरों के लिये जगह ही नहीं बचती, 


या कंकर भर दिये होते तो गेंदें नहीं भर पाते, 


रेत जरूर आ सकती थी...





ठीक यही बात जीवन पर लागू होती है....


यदि तुम छोटी-छोटी बातों के पीछे पडे़ रहोगे 


और अपनी ऊर्जा उसमें नष्ट करोगे 


तो तुम्हारे पास मुख्य बातों के लिये 


अधिक समय नहीं रहेगा... 





मन के सुख के लिये क्या जरूरी है ये तुम्हें तय करना है । 


अपने बच्चों के साथ खेलो,


बगीचे में पानी डालो , 


सुबह पत्नी के साथ घूमने निकल जाओ, 


घर के बेकार सामान को बाहर निकाल फ़ेंको, 


मेडिकल चेक- अप करवाओ.. 





छात्र बडे़ ध्यान से सुन रहे थे.. 


अचानक एक ने पूछा, 


सर लेकिन आपने यह नहीं बताया 


कि "चाय के दो कप" क्या हैं ?





प्रोफ़ेसर मुस्कुराये, बोले.. 


मैं सोच ही रहा था 


कि अभी तक ये सवाल किसी ने क्यों नहीं किया... 





इसका उत्तर यह है कि, 


जीवन हमें कितना ही परिपूर्ण और संतुष्ट लगे, 


लेकिन अपने खास मित्र के साथ 


दो कप चाय पीने की जगह हमेशा होनी चाहिये । 


अपने खास मित्रों 


और निकट के व्यक्तियों को 


यह विचार तत्काल बाँट दो..





मैंने अभी-अभी यही किया है.

Wednesday, October 5, 2011

AATAM-BODH: VIJAY DASHMI PER VISHESH

AATAM-BODH: VIJAY DASHMI PER VISHESH: 31 minutes ago Ravi Ghayal Aj samay aa gaya hai jab hamain sochna hoga ki aaj hamaara yeh haal kyon hai.. Hum vijay dashmi manaate hai...