Sunday, June 15, 2014

ऐसा नहीं है
पिताजी को केवल आज के दिन ही याद करता हूँ ...
मगर उनके होने का
पल पल का एहसास 
आज के दिन बताना चाहता हूँ आप सबको .....
तुम सुन रहे हो न पिता ?
जड़ एक माँ की तरह रही
और तुम तने के समान ,
आत्मविश्वास से तना हुआ
सुरक्षा का आधार ,
जिससे जुडी हुई हम शाखाएं
सदा लहराती रहीं
जश्न की तरह बहती
मंद हवाओं में ,
माना कुछ पत्ते टूटे भी
हादसे की आँधियों में ,
मगर टहनियां सुरक्षित थीं
तुम्हारे पुष्ट कन्धों पर ,
एक दिन जब तना टूट गया
चरमरा कर
जड़ भी सूखने लगी है
और शाखाएं बिखरी पडी हैं
संघर्ष के जंगल में ,
जीवन के चक्रवात में
नहीं टिक पाए
पत्ते , फल , फूल , कलियाँ ,
तुम सुन रहे हो न पिता ....?

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