मेरे परम प्रिय एवं
अभिन्न मित्र ने आज कुछ ऐसा पोस्ट कर दिया फेस बुक पर कि उस पर टिप्पणी करना मैं अत्यावश्यक
समझता हूँ
आप सब को पूरा मामला
समझ आ जाए इस लिए पहले मैं मित्र सुधीर बट्टा जी द्वारा पोस्ट की गई सामग्री आपके सम्मुख
प्रस्तुत कर रहा हूँ और फिर उस के बाद अपनी टिपण्णी, इस विनम्र आग्रह के साथ कि फेस
बुक का बुद्धि जीवी वर्ग इस बारे में अपनी राय अधिक से अधिक संख्या में अवश्य दे कर
आगे के लिए मर्ग प्रशस्त करेगा
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श्री सुधीर बट्टा जी
लिखते हैं
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"I too proud speaker of Hindi"........
Many are not aware that we spent Rs. 50 million in 1977 to enable Mr. Vajpayee,the then Foreign Minister ,to speak in Hindi,for a few minutes,at the UN....The country pays for an unnecessary show nationalism and ego.....At home this is "OK'....We cant progress globally by speaking in a language that has the same word "Yesterday" and "Tomorrow".
"I too proud speaker of Hindi"........
Many are not aware that we spent Rs. 50 million in 1977 to enable Mr. Vajpayee,the then Foreign Minister ,to speak in Hindi,for a few minutes,at the UN....The country pays for an unnecessary show nationalism and ego.....At home this is "OK'....We cant progress globally by speaking in a language that has the same word "Yesterday" and "Tomorrow".
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मेरी विनयपूर्वक टिप्पणी
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मित्र
मैं आपकी बात
से बिलकुल भी
सहमत नहीं हूँ
सबसे पहले
तो आपने एक
उदाहरण दिया "कल" का yesterday and tomorrow
के संदर्भ में
इस प्रकार के नाम
मात्र गिनती के
उदाहरण हो सकते
हैं हिंदी के
लिए
परन्तु
"UNCLE" और
"AUNTI" के बारे
में आप क्या
कहेंगे की चाचा,
ताया, फूफा, मौसा,
मामा, मामी,बुआ,मौसी,ताई
इत्यादि के लिए
क्या "आंगल" भाषा में
कोई उपयुक्त शब्द
हैं ?
अरे मेरे भाई
हिंदी जो की
संस्कृत से जन्मी
है उसका शब्दकोश
तो इतना विस्तृत
है की गणना
करना भी शायद
मुश्किल होगा जब
से विश्व में
संस्कृत भाषा का
प्रदुर्भाव हुआ है
करोड़ों ये अरबों
नहीं अब तक
हज़ारो खरब शब्द
देवनागरी(संस्कृत) के प्रयोग
हो चुके हैं
जब कि आंगल
भाषा में ये
आंकड़ा मात्र कुछ
करोड़ पर अटका
हुआ है
अब तो शायद
आपको विदित होगा
कि वैज्ञानिकों ने
भी हिंदी को
सबसे समृद्ध भाषा
मान लिया है
और यह सर्वविदित
( मैं साक्षर और
शिक्षित समुदाय की बात
कर रहा हूँ)
है कि कम्प्यूटर
ने मात्र संस्कृत
(देवनागरी) को ही
विश्व की किसी
भी भाषा के
अनुवाद के लिए
सक्षम माना है
और एक तथ्य
आप को और
बता दूँ विश्व
की लगभग सभी
भाषाएँ संस्कृत से ही
उतपन्न हुई हैं
और आपकी आंगल
भाषा भी इस
तथ्य से अछूती
नहीं और आप
को यह तो
ज्ञात ही होगा
कि संस्कृत एक
भाषा है जिसके
लिपि देवनागरी है
और हिंदी कि
लिपि भी देवनागरी
ही है
अत: मात्र एक आध
उदाहरण दे कर
हिंदी जो कि
हमारी मातृ भाषा
भी है उसका
अपमान मत करिये
ये मेरा विनम्र
आग्रह है
अब आईये विदेशों
में अत्यधिक खर्च
कर के हिंदी
में अपनी बात
कहने पर
आज हमारा देश किस-किस मुद्दे
पर खर्च नहीं
कर रहा
विशिष्ट लोगों की अकारण
विदेश यात्रा
सुरक्षा
पर्यावरण
.
.
.
खेलें
.
.
वैज्ञानिक खोजें
(जबकि आज केवल
Research अर्थात Re-search
हो रही है
, Search अर्थात
खोज तो हमारे
ऋषी मुनी हज़ारों
लाखों साल पहले
कर चुके हैं
जो सब वेदों
में वर्णित है)
.
.
चिकित्सा
(इस पर भी
हमारे चरक, वाग्भट्ट,
और अन्य अनगिनित
आयुर्वेदाचार्यों और ऋषियों
ने बहुत कुछ
शोध कर के
वेदों में लिख
रखा है और
आश्चर्य की बात
है कि आज
की चिकित्सा प्रणाली चाहे वो
शल्य चिकित्सा हो
अथवा औषध विज्ञान
अथवा किसी भी
और क्षेत्र का
संज्ञान, उस लाखों
वर्ष पूर्व लिखे
किसी भी सूत्र
को ना तो
काट पाया, ना गलत
सिद्ध कर पाया,
और ना ही
कुछ नया खोज
पाया)
.
.
ऐसे ही और
भी ना जाने
कितने क्षेत्र हैं
जिन पर हमारी
सरकार अनाप शनाप
खर्च कर रही
है और बरसों
से करती आ
रही है यही
कारण है की
हम दिन पर
दिन पिछड़ रहे
हैं
अत: अंत में
निवेदन है कि
हिंदी के प्रयोग
से देश का
कुछ भी अनिष्ट
नहीं होने वाला
हां इस से
विश्व में हमारी
प्रतिष्ठा अवश्य बढ़ रही
है और बढ़ेगी
अत: इस बात
का विरोध छोड़
कर किसी सार्थक
मुद्दे (विषय)पर
चर्चा करें तो
अधिक समीचीन होगा
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