Thursday, June 26, 2014

राजद्रोही, राष्ट्रद्रोही,शंकराचार्य के खिलाफ जनहित याचिका दायर होनी चाहिए Human Rights विरोध में संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) में मुक़्क़दमा चलाया जाना चाहिए

राजद्रोही, राष्ट्रद्रोही,शंकराचार्य के खिलाफ जनहित याचिका दायर होनी चाहिए इसने भारत संविधान में वर्णित मौलिक अधिकार धर्मनिश्पेक्षता को भी चोट पँहुचाई है

राजद्रोही, राष्ट्रद्रोही,शंकराचार्य के खिलाफ जनहित याचिका दायर होनी चाहिए इसने भारत संविधान में वर्णित मौलिक अधिकार धर्मनिश्पेक्षता को भी चोट पँहुचाई है अत: मानवाधिकार आयोग में भी इसके खिलाफ मामला दर्ज होना चाहिए

राष्ट्र गान की पंक्तियाँ ...
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई ,
सभी भारती  भाई भाई

तो अगर भाई भाई एक ही नाम से अपना धर्म निर्वहन करना चाहें तो इसमें धर्म को क्या आप्पत्ति है परन्तु शंकराचार्य को है
वो नहीं चाहता कि शिर्डी में कोई हिन्दू भाई जा कर अगर अपने धर्म  का निर्वहन करते हुए राम शब्द का प्रयोग करे क्योंकि शायद शिडी वाले बाबा मुसलमानों के पीर या पैगम्बर थे  इस इस से हिन्दू मुस्लिम भाई भाई को अलग करने के षड्यंत्र की बू आती है

राम शब्द का प्रयोग तो गुरु ग्रन्थ साहिब में भी अनेकों बार हुआ है इस प्रकार तो फिर यदि आपत्ति की गई तो गुरुग्रंथ साहिब को भी शायद नए सिरे से लिखना पड़ेगा क्योंकि यदि शिडी बाबा अवतार नहीं थे तो गुरुनानक भी अवतार नहीं थे और अवतार या भगवान को मानने वाले ही राम शब्द का प्रयोग, जाप व् ड्रम के रूप में प्रयोग कर सकते हैं

कहीं  यह देश के विभिन्न समुदायों, समाजों, सम्प्रदायों में फूट डालने की साजिश तो नहीं
आज शिर्डी को मानने वालों को हिंदुत्व से अलग करने का प्रयास हो रहा है कल जैन, आर्य , ईसाई, परनामी, बुद्ध, राधास्वामी,सच्चा सौदा को भी हिनू ना मानते हुए और इन समुदायों के गुरुओं को भगवान न मानते हुए इन को भी कहा जाएगा कि वो राम की पूजा ना करें, राम शब्द का प्रोग ना करें जबकि इन ऊपरवर्णित सभी समुदायों के धर्म ग्रंथों में अनेकों बार राम शब्द का प्रयोग हुआ है.

क्या आज तक  कोई भी  किसी भाषा पर अपना अधिकार सिद्ध कर सका है या कर सकता है .
क्या कोई भी भाषा किसी की बपौती हो सकती है
क्या किसी भी धर्म,, राष्ट्र,समुदाय ने जब से सृष्टी  बनी है आज तक किसी को किसी भाषा का मालिक होने का अधिकार दिया है ?

क्या पूरे विश्व में कहीं भी किसी भी भाषा को सीखने पर आज तक कोई पाबंदी लगी है ?

यदि  नहीं तो इसका सीधा साधा सा अर्थ है कोई भी मानव चाहे किसी भी देश का नागरिक हो, किसी भी धर्म का अनुयायी हो या मानने वाला  हो किसी भी भाषा को सीख  सकता है, बोल सकता है प्रयोग कर सकता है. और  जब भाषा के मामले में यह मौलिक अधिकार पूरी दुनिया के मानवों के लिए सिद्ध हो गया ओ इसके सीधा साधा सा अर्थ यह भी हो जाता है कि भाषा के शब्द भी कोई भी मानव किसी भी रूप में प्रयोग करने को स्वतंत्र है, क्योंकि भाषा को  अभिव्यक्त  करने का इस के अतरिक्त कोई भी उपाय  नहीं..तो शंकराचार्य किसी विशेष शब्द के प्रयोग  जैसे "राम" पर पाबंदी लगाने वाला कौन होता है ? क्या किसी संस्था, सरकार, राष्ट्र या समुदाय ने कोई ऐसा अधिकार किसी भी युग या काल में उसे दिया था ? यदि नहीं तो क्या ये पूरे विश्व के मानवाधिकारों का हनन नहीं.

इस अपराध के लिए क्या इस धूर्त शंकराचार्य पर Human Rights विरोध  में  संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) में मुक़्क़दमा नहीं चलाया जाना चाहिए ?


Friday, June 20, 2014

हिंदी के प्रयोग से देश का कुछ भी अनिष्ट नहीं होने वाला

मेरे परम प्रिय एवं अभिन्न मित्र ने आज कुछ ऐसा पोस्ट कर दिया फेस बुक पर कि उस पर टिप्पणी करना मैं अत्यावश्यक समझता हूँ

आप सब को पूरा मामला समझ आ जाए इस लिए पहले मैं मित्र सुधीर बट्टा जी द्वारा पोस्ट की गई सामग्री आपके सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हूँ और फिर उस के बाद अपनी टिपण्णी, इस विनम्र आग्रह के साथ कि फेस बुक का बुद्धि जीवी वर्ग इस बारे में अपनी राय अधिक से अधिक संख्या में अवश्य दे कर आगे के लिए मर्ग प्रशस्त करेगा 
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श्री सुधीर बट्टा जी लिखते हैं
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"I too proud speaker of Hindi"........
Many are not aware that we spent Rs. 50 million in 1977 to enable Mr. Vajpayee,the then Foreign Minister ,to speak in Hindi,for a few minutes,at the UN....The country pays for an unnecessary show nationalism and ego.....At home this is "OK'....We cant progress globally by speaking in a language that has the same word "Yesterday" and "Tomorrow".
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मेरी विनयपूर्वक टिप्पणी
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मित्र
मैं आपकी बात से बिलकुल भी सहमत नहीं हूँ
  सबसे पहले तो आपने एक उदाहरण दिया "कल" का  yesterday and tomorrow
के संदर्भ में
इस प्रकार के नाम मात्र गिनती के उदाहरण हो सकते हैं हिंदी के लिए
परन्तु
 "UNCLE"  और "AUNTI"  के बारे में आप क्या कहेंगे की चाचा, ताया, फूफा, मौसा, मामा, मामी,बुआ,मौसी,ताई इत्यादि के लिए क्या "आंगल" भाषा में कोई उपयुक्त शब्द हैं ?

अरे मेरे भाई हिंदी जो की संस्कृत से जन्मी है उसका शब्दकोश तो इतना विस्तृत है की गणना करना भी शायद मुश्किल होगा जब से विश्व में संस्कृत भाषा का प्रदुर्भाव हुआ है करोड़ों ये अरबों नहीं अब तक हज़ारो खरब शब्द देवनागरी(संस्कृत) के प्रयोग हो चुके हैं जब कि आंगल भाषा में ये आंकड़ा मात्र कुछ करोड़ पर अटका हुआ है

अब तो शायद आपको विदित होगा कि वैज्ञानिकों ने भी हिंदी को सबसे समृद्ध भाषा मान लिया है और यह सर्वविदित ( मैं साक्षर और शिक्षित समुदाय की बात कर रहा हूँ) है कि कम्प्यूटर ने मात्र संस्कृत (देवनागरी) को ही विश्व की किसी भी भाषा के अनुवाद के लिए सक्षम माना है

और एक तथ्य आप को और बता दूँ विश्व की लगभग सभी भाषाएँ संस्कृत से ही उतपन्न हुई हैं और आपकी आंगल भाषा भी इस तथ्य से अछूती नहीं और आप को यह तो ज्ञात ही होगा कि संस्कृत एक भाषा है जिसके लिपि देवनागरी है और हिंदी कि लिपि भी देवनागरी ही है

अत: मात्र एक आध उदाहरण दे कर हिंदी जो कि हमारी मातृ भाषा भी है उसका अपमान मत करिये ये मेरा विनम्र आग्रह है

अब आईये विदेशों में अत्यधिक खर्च कर के हिंदी में अपनी बात कहने पर
आज हमारा देश किस-किस मुद्दे पर खर्च नहीं कर रहा

विशिष्ट लोगों की अकारण विदेश यात्रा
सुरक्षा
पर्यावरण
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खेलें
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वैज्ञानिक खोजें 
(जबकि आज केवल Research  अर्थात  Re-search  हो रही है , Search  अर्थात खोज तो हमारे ऋषी मुनी हज़ारों लाखों साल पहले कर चुके हैं जो सब वेदों में वर्णित है)
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चिकित्सा
(इस पर भी हमारे चरक, वाग्भट्ट, और अन्य अनगिनित आयुर्वेदाचार्यों और ऋषियों ने बहुत कुछ शोध कर के वेदों में लिख रखा है और आश्चर्य की बात है कि आज की चिकित्सा  प्रणाली चाहे वो शल्य चिकित्सा हो अथवा औषध विज्ञान अथवा किसी भी और क्षेत्र का संज्ञान, उस लाखों वर्ष पूर्व लिखे किसी भी सूत्र को ना तो काट पाया, ना  गलत सिद्ध कर पाया, और ना ही कुछ नया खोज पाया)
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ऐसे ही और भी ना जाने कितने क्षेत्र हैं जिन पर हमारी सरकार अनाप शनाप खर्च कर रही है और बरसों से करती रही है यही कारण है की हम दिन पर दिन पिछड़ रहे हैं


अत: अंत में निवेदन है कि हिंदी के प्रयोग से देश का कुछ भी अनिष्ट नहीं होने वाला हां इस से विश्व में हमारी प्रतिष्ठा अवश्य बढ़ रही है और बढ़ेगी अत: इस बात का विरोध छोड़ कर किसी सार्थक मुद्दे (विषय)पर चर्चा करें तो अधिक समीचीन होगा

Tuesday, June 17, 2014

अपने गिरेबां में झांकिए

एक जापानी अपने मकान
की मरम्मत केलिए
उसकी दीवार
को खोल रहा था। ज्यादातर
जापानी घरों में
लकड़ी की दीवारो के
बीच जगह होती है। जब वह
लकड़ी की इस
दीवार को उधेड़ रहा तो उसने
देखा कि वहां दीवार में एक
छिपकली फंसी हुई थी।
छिपकली के एक पैरमें कील
ठुकी हुईथी। उसने यह देखा और उसे
छिपकली पर रहम आया। उसने
इस मामले में उत्सुकता दिखाई
और गौर से उस छिपकली के पैर में
ठुकी कील को देखा। अरे यह
क्या! यह तो वही कील है जो 1
साल पहले मकान बनाते वक्त ठोकी गई
थी। यह क्या !!!!
क्या यह छिपकली पिछले 1
साल से इसी हालत से दो चार
है? दीवार के अंधेरे हिस्से में
बिना हिले-डुले पिछले 1
साल से!! यह नामुमकिन है। मेरा दिमाग
इसको गवारा नहीं कर रहा। उसे
हैरत हुई।यह छिपकली पिछले 1
साल से आखिर जिंदा कैसे है!!!
बिना एक कदम हिले-डुले
जबकि इसके पैर में कील ठुकी है!
उसने अपना काम रोक दिया और
उस छिपकली को गौर से देखने
लगा। आखिर यह अब तक कैसे रह
पाई और क्या और किस तरह
की खुराक इसे अब तक मिल पाई।
इस बीच एक
दूसरी छिपकली ना जाने
कहां से वहां आई जिसके मुंह में
खुराक थी।
अरे!!!!! यह देखकर वह अंदर तक हिल
गया। यह दूसरी छिपकली पिछले
1 साल से इस फंसी हुई
छिपकली को खिलाती रही।
जरा गौर कीजिए वह
दूसरी छिपकली बिना थके और
अपने साथी की उम्मीद छोड़े
बिना लगातार 1 साल से उसे
खिलाती रही।आप अपने गिरेबां में
झांकिए
क्या आप
अपने जीवनसाथी के लिए
ऐसी कोशिश कर सकते हैं?
सोचिए क्या तुम अपनी मां के
लिए ऐसा कर सकते हो जो तुम्हें
नौ माह तक परेशानी पर
परेशानी उठाते
हुए अपनी कोख
में लिए-लिए फिरती है?
और कम से कम अपने पिता के लिए,
अपने भाई- बहिनों के लिए
या फिर अपने दोस्त के लिए?
गौर और फिक्र कीजिए अगर एक
छोटा सा जीव ऐसा कर
सकता है तो वह जीव
क्यों नहीं जिसको ईश्वर ने सबसे
ज्यादा अक्लमंद बनाया है?

Sunday, June 15, 2014

साँप से तुलना ना कर

इंसान की..


बिन सताऐ वो कभी


डसते नही
ऐसा नहीं है
पिताजी को केवल आज के दिन ही याद करता हूँ ...
मगर उनके होने का
पल पल का एहसास 
आज के दिन बताना चाहता हूँ आप सबको .....
तुम सुन रहे हो न पिता ?
जड़ एक माँ की तरह रही
और तुम तने के समान ,
आत्मविश्वास से तना हुआ
सुरक्षा का आधार ,
जिससे जुडी हुई हम शाखाएं
सदा लहराती रहीं
जश्न की तरह बहती
मंद हवाओं में ,
माना कुछ पत्ते टूटे भी
हादसे की आँधियों में ,
मगर टहनियां सुरक्षित थीं
तुम्हारे पुष्ट कन्धों पर ,
एक दिन जब तना टूट गया
चरमरा कर
जड़ भी सूखने लगी है
और शाखाएं बिखरी पडी हैं
संघर्ष के जंगल में ,
जीवन के चक्रवात में
नहीं टिक पाए
पत्ते , फल , फूल , कलियाँ ,
तुम सुन रहे हो न पिता ....?
एक बार एक मारवाड़ी ने जेल में बंद अपने बेटे
को पत्र लिखा... " बेटा मुझे खेतो में आलू बोने है
लेकिन में
बुड्डा हो गया हूँ इसलिए खेतो में खुदाई
नहीं कर
पा रहा हूँ..काश की तू यहाँ होता तो हम मिलकर
आलू बो देते...अब मुझे अकेले ही पूरा खेत
खोदना पड़ेगा.." बेटे ने वापस पत्र लिखा - बापू
तू पागल
हो गया है क्या? तू खेत मत खोदना वहा मेने
हथियार छुपा रखे हैं...अगर तूने खेत खोद दिए
तो में बर्बाद हो जाऊंगा...
लैटर भेजते ही दुसरे दिन कई पुलिस वाले उस
किसान के खेत पर गए और हथियार ढूंढ़ने के लिए
पूरा खेत खोद डाला..लेकिन वहा उन्हें एक
भी हथियार नहीं मिला..
बेटे ने वापस पत्र लिखा - बापू अब तू खेत में
आलू बो देना..मैं जेल से तेरी इतनी ही मदद कर
सकता हूँ...

दहेज


अशोक भाई ने घर मेँ पैर
रखा....‘अरी सुनतीे हो !'
आवाज सुनते ही अशोक भाई की पत्नी हाथ मेँ
पानी का गिलास लेकर बाहर आयी और
बोली"अपनी सोनल का रिश्ता आया है,
अच्छा भला इज्जतदार सुखी परिवार है,लडके
का नाम युवराज है ।
बैँक मे काम करता है।
बस सोनल हाँ कह दे तो सगाई करदेते है.
"सोनल उनकी एकमात्र लडकी थी..
घर मेँ हमेशा आनंद का वातावरण रहता था ।
कभी कभार अशोक भाई सिगरेट व पान मसाले के
कारण उनकी पत्नी और सोनल के साथ
कहा सुनी हो जाती लेकिन अशोक भाई मजाक मेँ
निकाल देते ।
सोनल खूब समझदार और संस्कारी थी ।
S.S.C पास करके टयुशन, सिलाई काम करके
पिता की मदद करने की कोशिश करती ।
अब तो सोनल ग्रज्येएट हो गई थी और
नोकरी भी करती थी लेकिन अशोक भाई
उसकी पगार मेँ से एक रुपया भी नही लेते थे...
और रोज कहते ‘बेटी यह पगार तेरे पास रख तेरे
भविष्य मेँ तेरे काम आयेगी ।
'दोनो घरो की सहमति से सोनल और युवराज
की सगाई कर दी गई और शादी का मुहूर्त
भी निकलवा दिया.
अब शादी के 15 दिन और बाकी थे.
अशोक भाई ने सोनल को पास मेँ बिठाया और
कहा-" बेटा तेरे ससुर से मेरी बात हुई...
उन्होने कहा दहेज मेँ कुछ नही लेँगे,
ना रुपये, ना गहने और ना ही कोई चीज ।
तो बेटा तेरे शादी के लिए मेँने कुछ रुपये
जमा किए है।
यह दो लाख रुपये मैँ तुझे देता हूँ।..
तेरे भविष्य मेँ काम आयेगे, तू तेरे खाते मे
जमा करवा देना.'"OK PAPA" - सोनल ने
छोटा सा जवाब देकर अपने रुम मेँ चली गई.
समय को जाते कहाँ देर लगती है ?
शुभ दिन बारात आंगन में आयी,
पंडितजी ने चंवरी मेँ विवाह विधि शुरु की।
फेरे फिरने का समय आया....
कोयल जैसे कुहुकी हो ऐसे सोनल दो शब्दो मेँ
बोली"रुको पडिण्त जी ।
मुझे आप सब की उपस्तिथि मेँ मेरे पापा के साथ
बात करनी है,"“पापा आप ने मुझे लाड प्यार से
बडा किया, पढाया, लिखाया खूब प्रेम
दिया इसका कर्ज तो चुका सकती नही...लेकिन
युवराज और मेरे ससुर जी की सहमति से आपने
दिया दो लाख रुपये का चेक मैँ वापस देती हूँ।
इन रुपयों से मेरी शादी के लिए लिये हुए उधार
वापस दे देना और दूसरा चेक तीन लाख जो मेने
अपनी पगार मेँ से बचत की है...
जब आप रिटायर होगेँ तब आपके काम आयेगेँ,मैँ
नही चाहती कि आप को बुढापे मेँ आपको किसी के
आगे हाथ फैलाना पडे !
अगर मैँ आपका लडका होता तब
भी इतना तो करता ना ? !!!
"वहाँ पर सभी की नजर सोनल पर
थी...“पापा अब मैं आपसे जो दहेज मेँ मांगू
वो दोगे ?
"अशोक भाई भारी आवाज मेँ -"हां बेटा",
इतना ही बोल सके ।
"तो पापा मुझे वचन दो"आज के बाद सिगरेट के
हाथ नही लगाओगे....तबांकु, पान-मसाले
का व्यसन आज से छोड दोगे।
सब की मोजुदगी मेँ दहेज मेँ बस
इतना ही मांगती हूँ ।."लडकी का बाप मना कैसे
करता ?
शादी मे लडकी की विदाई समय कन्या पक्ष
को रोते देखा होगा लेकिन आज
तो बारातियो कि आँखो मेँ आँसुओ कि धारा निकल
चुकी थी।7
मैँ दूर से सोनल को लक्ष्मी रुप मे देख
रहा था....501 रुपये का लिफाफा मैं अपनी जेब
से नही निकाल पा रहा था....साक्षात
लक्ष्मी को मैं कैसे लक्ष्मी दूं ??
लेकिन एक सवाल मेरे मन मेँ जरुर उठा,“भ्रूण
हत्या करने वाले लोगो को सोनल
जैसी लक्ष्मी मिलेगी क्या" ???
कृपया रोईए नही, आंसू पोछिए और
प्रेरणा लीजिये.............................!!!!!