राजद्रोही, राष्ट्रद्रोही,शंकराचार्य के खिलाफ जनहित याचिका दायर होनी चाहिए इसने भारत संविधान में वर्णित मौलिक अधिकार धर्मनिश्पेक्षता को भी चोट पँहुचाई है
राजद्रोही, राष्ट्रद्रोही,शंकराचार्य के खिलाफ जनहित याचिका दायर होनी चाहिए इसने भारत संविधान में वर्णित मौलिक अधिकार धर्मनिश्पेक्षता को भी चोट पँहुचाई है अत: मानवाधिकार आयोग में भी इसके खिलाफ मामला दर्ज होना चाहिए
राष्ट्र गान की पंक्तियाँ ...
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई ,
सभी भारती भाई भाई
तो अगर भाई भाई एक ही नाम से अपना धर्म निर्वहन करना चाहें तो इसमें धर्म को क्या आप्पत्ति है परन्तु शंकराचार्य को है
वो नहीं चाहता कि शिर्डी में कोई हिन्दू भाई जा कर अगर अपने धर्म का निर्वहन करते हुए राम शब्द का प्रयोग करे क्योंकि शायद शिडी वाले बाबा मुसलमानों के पीर या पैगम्बर थे इस इस से हिन्दू मुस्लिम भाई भाई को अलग करने के षड्यंत्र की बू आती है
राम शब्द का प्रयोग तो गुरु ग्रन्थ साहिब में भी अनेकों बार हुआ है इस प्रकार तो फिर यदि आपत्ति की गई तो गुरुग्रंथ साहिब को भी शायद नए सिरे से लिखना पड़ेगा क्योंकि यदि शिडी बाबा अवतार नहीं थे तो गुरुनानक भी अवतार नहीं थे और अवतार या भगवान को मानने वाले ही राम शब्द का प्रयोग, जाप व् ड्रम के रूप में प्रयोग कर सकते हैं
कहीं यह देश के विभिन्न समुदायों, समाजों, सम्प्रदायों में फूट डालने की साजिश तो नहीं
आज शिर्डी को मानने वालों को हिंदुत्व से अलग करने का प्रयास हो रहा है कल जैन, आर्य , ईसाई, परनामी, बुद्ध, राधास्वामी,सच्चा सौदा को भी हिनू ना मानते हुए और इन समुदायों के गुरुओं को भगवान न मानते हुए इन को भी कहा जाएगा कि वो राम की पूजा ना करें, राम शब्द का प्रोग ना करें जबकि इन ऊपरवर्णित सभी समुदायों के धर्म ग्रंथों में अनेकों बार राम शब्द का प्रयोग हुआ है.
क्या आज तक कोई भी किसी भाषा पर अपना अधिकार सिद्ध कर सका है या कर सकता है .
क्या कोई भी भाषा किसी की बपौती हो सकती है
क्या किसी भी धर्म,, राष्ट्र,समुदाय ने जब से सृष्टी बनी है आज तक किसी को किसी भाषा का मालिक होने का अधिकार दिया है ?
क्या पूरे विश्व में कहीं भी किसी भी भाषा को सीखने पर आज तक कोई पाबंदी लगी है ?
यदि नहीं तो इसका सीधा साधा सा अर्थ है कोई भी मानव चाहे किसी भी देश का नागरिक हो, किसी भी धर्म का अनुयायी हो या मानने वाला हो किसी भी भाषा को सीख सकता है, बोल सकता है प्रयोग कर सकता है. और जब भाषा के मामले में यह मौलिक अधिकार पूरी दुनिया के मानवों के लिए सिद्ध हो गया ओ इसके सीधा साधा सा अर्थ यह भी हो जाता है कि भाषा के शब्द भी कोई भी मानव किसी भी रूप में प्रयोग करने को स्वतंत्र है, क्योंकि भाषा को अभिव्यक्त करने का इस के अतरिक्त कोई भी उपाय नहीं..तो शंकराचार्य किसी विशेष शब्द के प्रयोग जैसे "राम" पर पाबंदी लगाने वाला कौन होता है ? क्या किसी संस्था, सरकार, राष्ट्र या समुदाय ने कोई ऐसा अधिकार किसी भी युग या काल में उसे दिया था ? यदि नहीं तो क्या ये पूरे विश्व के मानवाधिकारों का हनन नहीं.
इस अपराध के लिए क्या इस धूर्त शंकराचार्य पर Human Rights विरोध में संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) में मुक़्क़दमा नहीं चलाया जाना चाहिए ?
राष्ट्र गान की पंक्तियाँ ...
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई ,
सभी भारती भाई भाई
तो अगर भाई भाई एक ही नाम से अपना धर्म निर्वहन करना चाहें तो इसमें धर्म को क्या आप्पत्ति है परन्तु शंकराचार्य को है
वो नहीं चाहता कि शिर्डी में कोई हिन्दू भाई जा कर अगर अपने धर्म का निर्वहन करते हुए राम शब्द का प्रयोग करे क्योंकि शायद शिडी वाले बाबा मुसलमानों के पीर या पैगम्बर थे इस इस से हिन्दू मुस्लिम भाई भाई को अलग करने के षड्यंत्र की बू आती है
राम शब्द का प्रयोग तो गुरु ग्रन्थ साहिब में भी अनेकों बार हुआ है इस प्रकार तो फिर यदि आपत्ति की गई तो गुरुग्रंथ साहिब को भी शायद नए सिरे से लिखना पड़ेगा क्योंकि यदि शिडी बाबा अवतार नहीं थे तो गुरुनानक भी अवतार नहीं थे और अवतार या भगवान को मानने वाले ही राम शब्द का प्रयोग, जाप व् ड्रम के रूप में प्रयोग कर सकते हैं
कहीं यह देश के विभिन्न समुदायों, समाजों, सम्प्रदायों में फूट डालने की साजिश तो नहीं
आज शिर्डी को मानने वालों को हिंदुत्व से अलग करने का प्रयास हो रहा है कल जैन, आर्य , ईसाई, परनामी, बुद्ध, राधास्वामी,सच्चा सौदा को भी हिनू ना मानते हुए और इन समुदायों के गुरुओं को भगवान न मानते हुए इन को भी कहा जाएगा कि वो राम की पूजा ना करें, राम शब्द का प्रोग ना करें जबकि इन ऊपरवर्णित सभी समुदायों के धर्म ग्रंथों में अनेकों बार राम शब्द का प्रयोग हुआ है.
क्या आज तक कोई भी किसी भाषा पर अपना अधिकार सिद्ध कर सका है या कर सकता है .
क्या कोई भी भाषा किसी की बपौती हो सकती है
क्या किसी भी धर्म,, राष्ट्र,समुदाय ने जब से सृष्टी बनी है आज तक किसी को किसी भाषा का मालिक होने का अधिकार दिया है ?
क्या पूरे विश्व में कहीं भी किसी भी भाषा को सीखने पर आज तक कोई पाबंदी लगी है ?
यदि नहीं तो इसका सीधा साधा सा अर्थ है कोई भी मानव चाहे किसी भी देश का नागरिक हो, किसी भी धर्म का अनुयायी हो या मानने वाला हो किसी भी भाषा को सीख सकता है, बोल सकता है प्रयोग कर सकता है. और जब भाषा के मामले में यह मौलिक अधिकार पूरी दुनिया के मानवों के लिए सिद्ध हो गया ओ इसके सीधा साधा सा अर्थ यह भी हो जाता है कि भाषा के शब्द भी कोई भी मानव किसी भी रूप में प्रयोग करने को स्वतंत्र है, क्योंकि भाषा को अभिव्यक्त करने का इस के अतरिक्त कोई भी उपाय नहीं..तो शंकराचार्य किसी विशेष शब्द के प्रयोग जैसे "राम" पर पाबंदी लगाने वाला कौन होता है ? क्या किसी संस्था, सरकार, राष्ट्र या समुदाय ने कोई ऐसा अधिकार किसी भी युग या काल में उसे दिया था ? यदि नहीं तो क्या ये पूरे विश्व के मानवाधिकारों का हनन नहीं.
इस अपराध के लिए क्या इस धूर्त शंकराचार्य पर Human Rights विरोध में संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) में मुक़्क़दमा नहीं चलाया जाना चाहिए ?